अभी हाल ही में बिहार ने अपने सौ साल पूरे किये. इसी अवसर पर १-२ दिनों पहले बिहार दिवस भी मनाया गया. इतिहास के पन्नो पर भी ये जगह इस नाम से शायद न मिले मगर अपना वजूद ज़ुरूर रखता है. मौर्य और गुप्त साम्राज्य हमारे यहाँ के हैं, कौटिल्य हमारे यहाँ के हैं, नालंदा विश्वविद्यालय हमारे यहाँ था (फिर बन रहा है)... इतिहास के पन्नो से निकलकर आसपास देखते हैं तो माँ गंगा कल-कल बहती दीखती हैं, बोधगया , बुद्धों का पवित्र स्थल दीखता है. राजनैतिक पटल पर राजेंद्र प्रसाद, हमारे प्रथम राष्ट्रपति शीर्षस्थ पर काबिज हैं..."जयप्रकाश" आन्दोलन है...आदि-२. साहित्य में महाकवि विद्यापति, राष्ट्रकवि दिनकर हैं, बहुचर्चित नागार्जुन और एक लम्बी फेहरिस्त है.
मगर ये भी एक सच्चाई है की ये प्रान्त गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा और गुंडागर्दी लेकर भी बहुत (बद)नाम रहा. खास तौर पर बीसवीं सदी के आखिरी कुछ दशकों ने इसे काफी पीछे धकेल दिया. लोग अपना परिचय देने में कतराने लगे. "बिहारी" संबोधन न होकर गाली हो गया...जिम्मेदार कौन लोग हैं , नाम गिनों तो बहुत लम्बी सूची हो जाये पर हम नागरिक भी ज़िम्मेदार हैं जो अपनी पहचान छुपाते हैं, जिन्हें अपने इतिहास पर गर्व नहीं हैं. अपने वर्तमान पर विश्वास नहीं है और न अपने भविष्य पर भरोसा, वो विशेषतः जो एक सम्माननीय स्थान रखते हुए भी अपनी पहचान छुपाते हैं.
बहरहाल, अब स्थिति बदलती दीख रही है. मैं किसी राजनैतिक पार्टी विशेष का नुमाइंदा नहीं हूँ पर पिछले चंद सालों में इस नयी सरकार ने आस जगायी है, लोग अपनी पहचान बताने लगे हैं. अभी वक़्त लगेगा पर इस राह पे चलते रहे तो "बिहारी" शब्द गाली न होकर देश को चलाने वाली गाड़ी हो जाएगी. सभी देशवाशियों को हमारा प्रणाम, आपसे सहयोग की अपेक्षा है. और समस्त बिहारवासियों को ,प्रवासियों को भी (एक शब्द में बिहारियों को) बहुत-२ बधाई.
मैं वेबसाइट का पता भी लिख दे रहा हूँ.http://bihardiwas.in/
मगर ये भी एक सच्चाई है की ये प्रान्त गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा और गुंडागर्दी लेकर भी बहुत (बद)नाम रहा. खास तौर पर बीसवीं सदी के आखिरी कुछ दशकों ने इसे काफी पीछे धकेल दिया. लोग अपना परिचय देने में कतराने लगे. "बिहारी" संबोधन न होकर गाली हो गया...जिम्मेदार कौन लोग हैं , नाम गिनों तो बहुत लम्बी सूची हो जाये पर हम नागरिक भी ज़िम्मेदार हैं जो अपनी पहचान छुपाते हैं, जिन्हें अपने इतिहास पर गर्व नहीं हैं. अपने वर्तमान पर विश्वास नहीं है और न अपने भविष्य पर भरोसा, वो विशेषतः जो एक सम्माननीय स्थान रखते हुए भी अपनी पहचान छुपाते हैं.
बहरहाल, अब स्थिति बदलती दीख रही है. मैं किसी राजनैतिक पार्टी विशेष का नुमाइंदा नहीं हूँ पर पिछले चंद सालों में इस नयी सरकार ने आस जगायी है, लोग अपनी पहचान बताने लगे हैं. अभी वक़्त लगेगा पर इस राह पे चलते रहे तो "बिहारी" शब्द गाली न होकर देश को चलाने वाली गाड़ी हो जाएगी. सभी देशवाशियों को हमारा प्रणाम, आपसे सहयोग की अपेक्षा है. और समस्त बिहारवासियों को ,प्रवासियों को भी (एक शब्द में बिहारियों को) बहुत-२ बधाई.
मैं वेबसाइट का पता भी लिख दे रहा हूँ.http://bihardiwas.in/
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